(डॉ पीएस वोहरा, आर्थिक मामलों के जानकार)
मनमोहन सिंह जी के निधन के बाद मुल्क की आवाम में उनके द्वारा भारत की अर्थव्यवस्था के लिए किए गए योगदान पर बहुत चर्चा हो रही है। हर व्यक्ति उनके अथक प्रयासों को सराहा रहा है। ये उन्हें एक सच्ची और विनम्र श्रद्धांजलि है। स्वर्गीय डॉक्टर मनमोहन सिंह आजाद भारत की एक ऐसी शख्सियत थे जिन्हें भारतीय अर्थव्यवस्था की शक्ल को बदलने और उसे एक मजबूत स्वरूप देने के जनक के तौर पर जाना जाता है। उसी के कारण ही आज भारत वैश्विक तौर पर बड़ी तेजी से आगे बढ़ रहा है। एक समय, 90 के दौर तक हमारा पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान आर्थिक प्रगति की दौड़ में हमसे आगे होता था लेकिन आज वो भारत को आर्थिक प्रगति में छूने की कल्पना भी नहीं कर सकता। विश्व की सभी बड़ी अग्रणी संस्थाएं जब भारत के लिए इस बात को अनुमानित करती हैं कि भारत आगामी कुछ वर्षों में तीसरी बड़ी अर्थव्यवस्था बनेगा तो ये सब उस दौर के लोगों को एक सपना नहीं लगता जिन्होंने 90 के दशक के आर्थिक सुधारों की पृष्ठभूमि और उनके लागू होने के बाद के समय को न केवल देखा है अपितु बड़ी नजदीकी से जीया भी है। आज की पीढ़ी जब आत्मनिर्भर भारत के स्लोगन को अपना स्वाभिमान मानती है परंतु उन्हें शायद इस बात का इल्म नहीं है कि एक दौर वो भी था जब अर्थव्यवस्था तकरीबन दिवालियापन के कगार पर खड़ी थी और तब अगर देश को मनमोहन सिंह नहीं मिलते तो देश यहां तक कभी नहीं पहुंचता।
मनमोहन सिंह के द्वारा किए गए आर्थिक सुधारों को आज तीन दशकों के बाद अगर समझने की कोशिश की जाए और एक ही परिणाम निष्कर्ष के रूप में निकला जाए तो वो है, भारत में एक बहुत बड़े मध्यम वर्गीय समाज की आर्थिक संरचना। इस बात को आज की पीढ़ी को अपने ख्यालों में रखना पड़ेगा कि 90 के दौर से पहले भारत में मात्र दो तरह के लोग समाज में रहते थे एक अमीर और दूसरा गरीब। आज भारत की आबादी का 31 प्रतिशत हिस्सा मध्यवर्गीय आय समूह से आता है जो विश्व की तकरीबन सभी बड़े उत्पादों, सर्विस क्षेत्र आदि के लिए एक बाजार की पहचान रखता है। अब अगर तीन दशक पूर्व, 90 के दौर में वापस चले तो उस दौर में घरों में टीवी नहीं होते थे, एलपीजी सिलेंडर के लिए भटकना पडता था। टेलीफोन और कार वाले लोग तो अमीर जाने जाते थे और साथ ही उन लोगों के लिए भी टेलीफोन और कार खरीदने के लिए दो तीन साल की वेटिंग रहती थी। आज हर घर में सैटेलाइट कनेक्शन है। कार और मोबाइल मध्यवर्गीय आय समूह की जिंदगी का एक आम हिस्सा है। वहीं तीन दशक पूर्व भारत के एक बहुत बड़े तबके के पास केवल एक छोटा सा वेतन मासिक आय के तौर पर होता था, बचत के रूप में कुछ भी नहीं रहता था। आज भारतीय अपनी मासिक आय को गुणवत्तापूर्ण जीवन जीने के कई आयामों पर खर्च कर रहे हैं जिनमें बच्चों की अच्छी शिक्षा, अच्छी स्वास्थ्य सुविधाएं और कई अन्य तरह की उपभोग की वस्तुओं को खरीदना और उनका उपयोग करना शामिल है। इसके अलावा आज भारत का मध्यम वर्गीय आय समूह का व्यक्ति अपनी बचत को बैंकों की तुलना में पूंजी बाजार में भी डाल रहा है।
ये सभी बदलाव आज भी आजाद भारत की दूसरी व तीसरी पीढ़ियों ने देखा है। दूसरी पीढ़ी 90 के दौर में गरीबों के दौर से निकली और तीसरी पीढ़ी आज गुणवत्तापूर्ण जीवन जीने का ख्याल रखती है। इस सबका श्रेय स्वर्गीय डॉ. मनमोहन सिंह के उन आर्थिक सुधारों को जाता है जिन्हें हम अर्थशास्त्र की परिभाषा में एलपीजी के नाम से जानते हैं।
डॉ मनमोहन सिंह के अर्थव्यवस्था में अनगिनत बेहतरीन योगदान है लेकिन आम आदमी के मद्देनजर अगर बात की जाए तो वो है निजी क्षेत्र जो आज सरकार के कंधे के साथ कंधा मिलाकर आर्थिक विकास में योगदान दे रहा है, उसे प्रोत्साहन 90 के आर्थिक सुधारो में ही मिला। 90 के दौर तक सरकारी क्षेत्र में ही रोजगार होता था और आज रोजगार का सबसे बड़ा श्रोत निजी क्षेत्र ही है। याद आता है, 70 के दशक का वह दौर जब भारत में महंगाई की दर आज तक के सबसे उच्चतम स्तर पर थी और तब प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को उस समय के अर्थशास्त्रियों ने सुझाव दिया था कि खाद्य पदार्थों जिनमें गेहूं मुख्य तौर पर शामिल था, का राष्ट्रीयकरण कर दिया जाए ताकि महंगाई नियंत्रण में रहे लेकिन डॉ. मनमोहन सिंह इस सबके बिलकुल खिलाफ थे और उन्होंने बहुत निर्भीक होकर इंदिरा गांधी को इस बात का सुझाव दिया कि अगर वित्तीय नीतियों में सख्ती बरती जाए और आर्थिक तरलता को कम किया जाए तो महंगाई में नियंत्रण संभव है। आंकड़े भी इस बात की गवाही देते हैं कि डॉ मनमोहन सिंह के उन सुझावों के चलते इंदिरा गांधी के दौर में 70 के दशक में 30 प्रतिशत की महंगाई दर 14 प्रतिशत पर आकर रुकी थी। आज भी भारत के केंद्रीय बैंक महंगाई को नियंत्रण में रखने के लिए सख्त वित्तीय नीतियों को ही लेकर चलते हैं जो मनमोहन सिंह की ही देन है।
आज का समाज दिन- प्रतिदिन भारतीय पूंजी बाजार बीएसई, एनएससी की प्रगति के नए-नए आंकड़ों को देख कर उनमें निवेश करने को प्रोत्साहित होता है। इस संबंध में आंकड़े ये बताते हैं कि मनमोहन सिंह के 90 के आर्थिक सुधारों ने भारतीय पूंजी बाजार में पिछले तीन दशकों में उसे 780 गुना की ऊंचाई दी है क्योंकि 90 के दौर में बीएससी का सेंसेक्स
1000 पॉइंट पर था जो अब 78000 से ऊपर है। ये मनमोहन सिंह ही थे जिन्होंने निजी क्षेत्र की पूंजी की आवश्यकता को समझा और उसे सरकार पर निर्भर रहने की बजाय पूंजी बाजार का एक विकल्प उपलब्ध करवाया। आज जब हम हर दिन एक या दो आईपीओ को पूंजी बाजार में आते देखते हैं तो इसके पीछे का भी सारा श्रेय मनमोहन सिंह के 90 के दौर के आर्थिक सुधारों को ही जाता है। हालांकि उस दौर में हर्षद मेहता का घोटाला भी सभी ने देखा था लेकिन मनमोहन सिंह की आर्थिक नीतियों में दूरदर्शिता ही थी जिसने 1992 में सेबी को बहुत मजबूत किया। उन्होंने पूंजी बाजार में एनएससी को भी स्थापित किया। उसी के चलते आज भारत के पास दो बड़े पूंजी बाजार बीएसई, एनएससी के रूप में उपलब्ध हैं।
आज भारतीय अर्थव्यवस्था की सबसे बड़ी मजबूत ताकत इसकी बैंकिंग व्यवस्था है। उनके वित्त मंत्री रहने के दौरान आरबीआई ने 10 बड़े प्राइवेट बैंकों को लाइसेंस दिए। उसके चलते आज एचडीएफसी और आईसीआईसीआई बैंक को भारत में पब्लिक बैंकों के बाद सबसे बड़े ताकतवर बैंकों के रूप में देखते हैं। इन बैंकों ने भारत में व्यापार करने को आसान बनाया क्योंकि इन्होंने उद्यमियों को पूंजी ऋण के रूप में आसानी से उपलब्ध करवाई। इसके अलावा उनके वित्त मंत्री रहने के दौरान ही सार्वजनिक बैंकों को भी पूंजी बाजार का रास्ता दिखाया गया ताकि वह अपनी वित्तीय कार्य कुशलता को और अधिक मजबूत कर सकें।
मनमोहन सिंह के इस योगदान को तो सब समझते हैं कि उन्होंने भारत को विदेशी मुद्रा के संकट से निकाला लेकिन डॉक्टर सिंह एक विरले आर्थिक विचारक थे और अपनी दूरदर्शिता के चलते ही 1994 जुलाई में उन्होंने रुपए का दो बार अवमूल्यन किया। तब इस अवमूल्यन की सीमा तकरीबन 18 प्रतिशत थी। अवमूल्यन से तब रुपए के मूल्य को कम किया गया था क्योंकि तब वैश्विक बाजार में भारत के निर्यात बहुत महंगे थे। मनमोहन सिंह ने रुपए के अवमूल्यन से निर्यातों को वैश्विक बाजार में सस्ता किया और निर्यातों को वैश्विक बाजार में बनाए रखने के लिए दी जाने वाली सब्सिडी की भी बचत की। हालांकि डॉ. मनमोहन सिंह ने 47 टन सोना 600 मिलियन अमेरिकन डॉलर के लिए इंग्लैंड में गिरवी भी रखा था। लेकिन आंकड़े इस बात की भी गवाही देते हैं कि वो करना उस समय की सबसे बड़ी आवश्यकता थी। इसी के चलते 2 वर्षों में ही विदेशी मुद्रा भंडारण 10 बिलियन डॉलर हो गया था जो बीते वर्ष 2023 में 700 बिलियन डॉलर के बराबर था। ये आज तक भारत की अपने आप में एक अविश्वसनीय प्रगति दिखती है।
एक अन्य बेहतरीन उपलब्धि डॉक्टर मनमोहन सिंह के खाते में ये भी जाती है कि वर्ष 2006 की अमेरिका की मंदी से उन्होंने भारत को समय रहते बचा लिया था। इस संबंध में कई अर्थशास्त्रियों और उस समय के विद्वानों के आलेखों, कथनों में इस बात का उल्लेख मिलता है कि डॉ. सिंह की तब बहुत स्पष्ट सोच थी भारत में बैंकिंग व्यवस्था को हर हालत में संभाल कर रखना है, चाहे बैंक निजी हो या सरकारी, छोटा हो या बड़ा, उसे दिवालिया नहीं होने देना। उसके अलावा भारत अपने सभी अंतरराष्ट्रीय वित्तीय जिम्मेदारियों के भुगतान में भी बिल्कुल देरी नहीं करेगा। इन्हीं सबके चलते भारत में अमेरिका की वैश्विक मंदी का बहुत बड़ा असर नहीं हुआ था।
देश को इस बात से भी अवगत रहना चाहिए कि डॉ. मनमोहन सिंह के प्रधानमंत्री काल के दौरान एक दशक की विकास दर आज तक की सबसे अधिक रही है। उनके पहले 5 वर्षों के कार्यकाल में भारत की औसतन विकास दर 8 प्रतिशत थी और आखिरी के 5 वर्षों के कार्यकाल में वह 6 प्रतिशत थी।
आखिर में डॉक्टर मनमोहन सिंह को अर्थशास्त्री के रूप में पहचान की बजाय एक अर्थ शिल्पकार के रूप में जाना जाए तो ये उनके लिए एक सच्ची श्रद्धांजलि होगी और उन कथनों के सामने एक निर्भीक अंदाज भी जब उन्हें ओवररेटेड अर्थशास्त्री और अंडररेटेड राजनेता के रूप में मीडिया के द्वारा उल्लेखित किया गया।