झालावाड़: राजस्थान के झालावाड़ जिले के सारदा कस्बे में मूर्तिकार गोबर की मुर्तिया बना रहे है जिससे एक और पर्यावरण को बढ़ावा मिलेगा तोह दूसरी और गौ रक्षा भी होगी। कुछ दिनों में गणेश चतुर्थी का पर्व आने को है ऐसे में इन मूर्तियों की मांग और बढ़ रही है.
सारदा की पहल पर्यावरण-अनुकूल सामग्री और तकनीकों का उपयोग करके शिल्प को एक आधुनिक मोड़ दे रही है. इससे यह सुनिश्चित करने में मदद मिल रही है कि आने वाले वर्षों में शिल्प प्रासंगिक और टिकाऊ बना रहेगा. ये मूर्तियां गाय के गोबर, मिट्टी और पानी सहित 100 फीसदी प्राकृतिक सामग्रियों से बनाई जाती हैं.
मूर्तियां बनाने की प्रक्रिया गाय का गोबर इकट्ठा करने से शुरू होती है. फिर गोबर को सुखाकर पीसकर बारीक पाउडर बना लिया जाता है. इस पाउडर को मिट्टी और पानी के साथ मिलाकर आटा बनाया जाता है. फिर आटे को मूर्ति के वांछित आकार में ढाला जाता है. मूर्तियां तैयार हो जाने के बाद उन्हें धूप में सूखने के लिए छोड़ दिया जाता है. एक बार जब मूर्तियां सूख जाती हैं, तो उन्हें प्राकृतिक रंगों से रंगा जाता है. सबसे आम इस्तेमाल किए जाने वाले रंग हल्दी, केसर व चंदन हैं. गाय के गोबर से बनी मूर्तियां बेहद सुंदर व आकर्षक दिखाई देती हैं. मूर्तियों के अलावा सरड़ा में गाय के गोबर से लक्ष्मी चरण, दीपक, मोबाइल स्टैंड (रेडिएशन फ्री) अर्क सहित मानचित्र भी बनाए जाते हैं.