50 साल पहले यानी 1973 की बात है। अरब और इजराइल के बीच जंग छिड़ी थी। इजराइल का सपोर्ट कर रहे अमेरिका समेत कई पश्चिमी देशों को सऊदी अरब ने पेट्रोलियम की सप्लाई बंद कर दी। इससे दुनियाभर के तेल बाजार में असंतुलन पैदा हो गया। यही वो समय था, जब ब्राजील ने पेट्रोल-डीजल की जगह ईंधन के रूप में एथेनॉल के इस्तेमाल का फैसला किया। आज ब्राजील तेल के मामले में पूरी तरह से आत्मनिर्भर देश हो गया है।
एथेनॉल और ब्राजील की ये कहानी हम इसलिए सुना रहे हैं क्योंकि आज भारत में 100% एथेनॉल से चलने वाली टोयोटा इनोवा गाड़ी लॉन्च हो रही है। एथेनॉल ईंधन की एक खासियत यह है कि यह तेल के कुओं से नहीं, बल्कि किसानों के खेतों से आता है। केंद्रीय सड़क परिवहन मंत्री नितिन गडकरी का दावा है कि आने वाले समय में एथेनॉल की वजह से पेट्रोल की कीमत 15 रुपए लीटर तक हो सकती है।
भास्कर एक्सप्लेनर में जानेंगे कि किसानों के खेत से बनाया जाने वाला एथेनॉल क्या है, यह कैसे बनता है और इसके इस्तेमाल से पेट्रोल की कीमत कितना कम हो सकती है?
पहले ब्राजील की कहानी, कैसे वह बना एथेनॉल इस्तेमाल करने में नंबर 1 देश
6 अक्टूबर 1973 की बात है। मिस्र और सीरिया ने इजराइल पर हमला कर दिया। इसके साथ ही दूसरी बार अरब देशों के साथ इजराइल की जंग शुरू हो गई। मिस्र समेत 8 अरब देशों जैसे जॉर्डन, इराक, कुवैत, सऊदी अरब, सीरिया, सूडान और अल्जीरिया ने भी इजराइल पर हमला कर दिया।
अमेरिका की मदद से सिर्फ 6 दिनों में इजराइल ने इन 8 देशों को जंग हारने के लिए मजबूर कर दिया। अमेरिका से नाराज होकर सऊदी अरब समेत बाकी अरब देशों ने अमेरिका, कनाडा और नीदरलैंड जैसे देशों को तेल एक्सपोर्ट करना बंद कर दिया।
1973 में अरब देशों के इस फैसले से दुनिया की तेल सप्लाई चेन को बड़ा झटका लगा। इसका असर ब्राजील पर भी पड़ा। 1975 में ब्राजील ने तेल के मामले में खुद को आत्मनिर्भर बनाने के लिए नेशनल अल्कोहल प्रोग्राम लॉन्च किया। ब्राजील ने शुरुआत में गन्ने से एथेनॉल बनाने का काम शुरू किया। फिएट, फॉक्सवैगन, जीएम और फोर्ड जैसी कंपनियों ने एथेनॉल से चलने वाली गाड़ियां बनानी शुरू कर दीं।
जुलाई 1979 में पहली बार फिएट 147 गाड़ी लॉन्च हुई जो पूरी तरह से एथेनॉल से चलने वाली कार थी। महज 6 साल में ब्राजील की कंपनियां 100 में से 75 ऐसी कार बनाने लगीं जो पूरी तरह से एथेनॉल से चलती हों। वर्ल्ड वाइल्ड लाइफ फंड स्टडी के मुताबिक 2030 तक अनुमान है कि ब्राजील में कुल तेल की डिमांड का 72% हिस्सा बायोफ्यूल होगा। जिस एथेनॉल ईंधन इंडस्ट्री में भारत ने अब एंट्री की है, ब्राजील उसमें चैंपियन है।
एथेनॉल क्या होता है और कैसे बनाया जाता है?
एथेनॉल एक तरह का अल्कोहल है, जो गन्ने के रस और मक्का, सड़े आलू, कसावा और सड़ी सब्जियों से तैयार किया जाता है। स्टार्च और शुगर के फर्मेंटेशन से बने एथेनॉल को पेट्रोल में मिलाकर बायोफ्यूल की तरह इस्तेमाल किया जाता है। ये मुख्य रूप से तीन तरह के होते हैं…
1G एथेनॉल: फर्स्ट जनरेशन एथेनॉल गन्ने के रस, मीठे चुकंदर, सड़े आलू, मीठा ज्वार और मक्का से बनाया जाता है।
2G एथेनॉल: सेकेंड जनरेशन एथेनॉल सेल्युलोज और लिग्नोसेल्यूलोसिक मटेरियल जैसे – चावल की भूसी, गेहूं की भूसी, कॉर्नकॉब (भुट्टा), बांस और वुडी बायोमास से बनाया जाता है।
3G बायोफ्यूल: थर्ड जनरेशन बायोफ्यूल को एलगी से बनाया जाएगा। अभी इस पर काम चल रहा है।
भारत में एथेनॉल को लेकर सरकार की प्लानिंग
2021-22 में भारत ने अपनी ऊर्जा जरूरतों को पूरा करने के लिए 86% ईंधन आयात किया था। इसी निर्भरता को कम करने के लिए भारत सरकार ने E20 योजना लॉन्च की है। जैसा कि आपने ऊपर की स्लाइड में देखा कि E20 फ्लेक्स फ्यूल में फिलहाल सरकार पेट्रोल में 20% तक एथेनॉल मिलाने की योजना पर काम कर रही है।
इससे दूसरे देशों से कम तेल खरीदने की जरूरत होगी। इतना ही नहीं, सालाना सरकारी खजाने में 33 हजार करोड़ रुपए से ज्यादा की बचत होगी। भारत सरकार 2025-26 तक E20 योजना को सफलतापूर्वक पूरे देश में लागू करना चाह रही है।
11 जुलाई 2023 को पेट्रोलियम मंत्री हरदीप सिंह पुरी ने कहा कि E20 पेट्रोल अभी 1,350 पेट्रोल पंप पर मिल रहा है और 2025 तक ये पूरे देश में उपलब्ध होगा।
क्या एथेनॉल बनाने के लिए देश में इतना एक्स्ट्रा अनाज उपलब्ध है?
केंद्रीय कृषि मंत्रालय के पूर्व सचिव सिराज हुसैन के मुताबिक देश में एथेनॉल की मांग को मुख्य रूप से तीन फसल चावल, गन्ना और मक्का के जरिए पूरा करने का लक्ष्य है। अगर क्लाइमेट चेंज की वजह से फसल के पैदावार पर होने वाले असर और मॉडर्न टेक्नोलॉजी से इसके पैदावार में होने वाली वृद्धि का आकलन करें तो एथेनॉल बनाने के लिए तीनों अनाजों को लेकर देश में ये स्थिति देखने को मिलती है…
1. मक्का एथेनॉल के लिए सबसे महत्वपूर्ण फसल है। इस फसल की पैदावार को और ज्यादा बढ़ाने की जरूरत है। इंडियन शुगर मिल एसोसिएशन का कहना है कि 2021-22 में सिर्फ महाराष्ट्र में गन्ना उत्पादन में 16 लाख टन की कमी हुई है। एथेनॉल बनाने में बेहतर करना है तो इसे बढ़ाना होगा।
2. देश में मक्का का उत्पादन इतना ज्यादा नहीं है कि इससे एथेनॉल बनाना संभव हो।
3. चावल की बात करें तो सरकार पहले लोगों की भूख मिटाने के लिए इसका इस्तेमाल करेगी। भारत 20 मिलियन मीट्रिक टन चावल सालाना विदेश भेजती है। अगर सालाना विदेश में चावल के एक्सपोर्ट को घटाकर 15 मिलियन मीट्रिक टन कर दिया जाए तो इससे 1.27 बिलियन लीटर एथेनॉल बनाया जा सकता है।
किन गाड़ियों में एथेनॉल मिला E20 फ्लेक्स फ्यूल इस्तेमाल होगा?
नए मॉडल की बन रही सभी गाड़ियों में एथेनॉल से बने पेट्रोल का उपयोग हो सकेगा। इसका कारण ये है कि यहां बन रही ज्यादातर गाड़ियों में इंजन BS-4 से BS-6 स्टेज के हैं।
एथेनॉल ब्लेंडिंग प्रोग्राम के तहत केंद्र सरकार ने पहले ही इंजन बनाने वाली कंपनियों को E20 पेट्रोल के लिए इंजन बनाने के निर्देश दे रखे हैं।
वैसे पुरानी गाड़ियों में भी इसका उपयोग किया जा सकता है, लेकिन इससे गाड़ी में कम माइलेज और कम पावर की आशंका रहेगी। हालांकि, पुरानी गाड़ी के इंजन में कुछ बदलाव करवा सकते हैं। अगर गाड़ी बहुत पुरानी है तो उसे नई स्क्रैप पॉलिसी के तहत स्क्रैप कराना होगा।
3.50 रुपए तक कम हो सकती है एक लीटर पेट्रोल की कीमत: नरेंद्र तनेजा
एनर्जी एक्सपर्ट नरेंद्र तनेजा का कहना है कि E20 योजना के तहत अभी सिर्फ पेट्रोल में एथेनॉल मिलाया जा रहा है। इससे प्रति लीटर तक 3.50 रुपए तक कीमत कम होने की संभावना होती है। हालांकि, ये सब कुछ तेल कंपनियों पर निर्भर करता है। दो वजहों से फ्लेक्सी फ्यूल सस्ते होते हैं…
1. एथेनॉल की कीमत पेट्रोलियम पदार्थों से कम होती है। ऐसे में जब एक लीटर में 20% एथेनॉल मिलाया जाएगा तो कीमत कम होना स्वाभाविक है।
2. एथेनॉल पर पेट्रोल की तुलना में कम टैक्स लगाए जाते हैं। फलेक्सी फ्यूल के सस्ता होने की एक वजह यह भी है।
नरेंद्र तनेजा कहते हैं कि E85 यानी एक लीटर पेट्रोल में 85% एथेनॉल मिलाया जाना संभव नहीं है। भारत में अभी सिर्फ पेट्रोल में एथेनॉल मिलाया जा रहा है। डीजल में एथेनॉल मिलाए जाने के प्रोजेक्ट पर भी काम हो रहा है। E20 योजना के लिए भी काफी ज्यादा एथेनॉल की जरूरत होगी।
ऐसे में यहां ब्राजील की तरह E85 लागू करना अभी मुश्किल है। भारत की तुलना में ब्राजील की आबादी कम है। वहां ईंधन की खपत भी कम है और गन्ने की पैदावार के लिए जमीन और मौसम अनुकूल है। ऐसे में भारत से उसकी तुलना नहीं हो सकती है।
भारत में अभी E20 से सिर्फ दो फायदे होते दिख रहे हैं। पहला- दूसरे देशों से कम तेल खरीदना होगा।, दूसरा- बायोफ्यूल होने की वजह से पर्यावरण प्रदूषण कम होगा।