सुप्रीम कोर्ट ने पैकेज्ड ड्रिंकिंग वॉटर की गुणवत्ता से जुड़ी एक जनहित याचिका को खारिज करते हुए कड़ी टिप्पणी की है। अदालत ने कहा कि जब देश के बड़े हिस्से में लोगों को आज भी साफ पीने का पानी नसीब नहीं हो पा रहा, तब बोतलबंद पानी के अंतरराष्ट्रीय मानकों को लागू करने की मांग एक ‘लग्ज़री लिटिगेशन’ है।
यह याचिका भारत में बिकने वाले बोतलबंद पानी के लिए सिंगापुर, यूरोपीय यूनियन और अन्य विकसित देशों जैसे सख्त मानक लागू करने की मांग को लेकर दायर की गई थी। याचिकाकर्ता का तर्क था कि WHO के दिशा-निर्देशों के अनुरूप हानिकारक रसायनों की अधिकतम सीमा तय करना जनता के स्वास्थ्य और सुरक्षा के लिए जरूरी है।
हालांकि, CJI सूर्यकांत और जस्टिस जॉयमाल्या बागची की पीठ ने इस दलील को खारिज कर दिया। अदालत ने कहा कि यह सोच शहरी नजरिए से प्रेरित है, जबकि देश की बड़ी आबादी आज भी ग्रामीण इलाकों में रहती है और भूजल पर निर्भर है, जहां पीने के पानी की बुनियादी उपलब्धता ही एक बड़ी चुनौती बनी हुई है।
कोर्ट ने टिप्पणी करते हुए कहा कि यदि याचिकाकर्ता देश की वास्तविक स्थिति को समझना चाहता है, तो उसे महात्मा गांधी की तरह ग्रामीण भारत का भ्रमण करना चाहिए, जहां लोगों को आज भी पीने के पानी के लिए संघर्ष करना पड़ता है।
सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि जब तक देश में सभी नागरिकों को बुनियादी पेयजल की सुविधा सुनिश्चित नहीं हो जाती, तब तक बोतलबंद पानी के अंतरराष्ट्रीय गुणवत्ता मानकों पर विचार करना प्राथमिकता नहीं हो सकता।
